यक़ीनन हमारा शरीर एक ऐसे मशीन की तरह है जिसकी तुलना दुनियाँ की कोई भी मानव-निर्मित मशीन नहीं कर सकती. लेकिन कभी-कभी इस मशीन में भी कुछ ऐसी ख़राबियां भी हो जाती जिसके लिए इन्सान को बहुत तकलीफ़ होती है...इसी तरह की बिमारी में बहरापन भी आता है. बहरापन या अश्रव्यता पूर्ण या आंशिक रूप से ध्वनियों को सुनने की शक्ति का ह्रास होने की स्थिति को कहते हैं। यह एक आम बीमारी है। इस रोग में न सिर्फ सुनने की शक्ति कम हो जाती है बल्कि व्यक्ति की सामाजिक व मानसिक परेशानियां भी बढ़ जाती हैं। जब कोई व्यक्ति बोलता है, तो वह ध्वनि तरंगों के द्वारा हवा में एक कंपन पैदा करता है। यह कंपन कान के पर्दे एवं सुनने से संबंधित तीन हड्डियों-मेलियस, इन्कस एवं स्टेपीज के द्वारा आंतरिक कान में पहुंचता है और सुनने की नस द्वारा आंतरिक कान से मस्तिष्क में संप्रेषित होता है। इस कारण ध्वनि का अहसास होता है। यदि किसी कारण से ध्वनि की इन तरंगों में अवरोध पैदा हो जाए, तो बहरापन हो जाएगा।
कारण
अन्य बहरेपन के कई करण हो सकते हैं। इनमें से निम्न प्रमुख हैं:-
- उम्र बढ़ने के साथ बहरापन की समस्या उत्पन्न होना प्राकृतिक घटना है
- व्यावसायिक जोखिम (जो लोग शोर वाले क्षेत्रों में काम कर रहे हैं)
- मोम के कान में गिरने या डालने से
- गंभीर कान संक्रमण
- टीम्पेनिक रोग
- टीम्पेनिक झिल्ली में छेद
- कान में हड्डियों का विकास या भर जाना और कैंसर जैसे बीमारी
लक्षण
बहरेपन के लक्षण छोटे बच्चे के एक वर्ष की आयु से ही लक्षित होते हैं।
- बच्चा जब किसी आवाज का जवाब नहीं देता हो
- दूसरों की बात समझने में असमर्थ
- दूसरों से जोर से बात बोलने के लिए कहना
बहरेपन के कितने प्रकार हैं:
कंड्टिव बहरापन
यदि अवरोध कान के पर्दे या सुनने की हड्डियों तक सीमित रहता है तो इसे कन्डक्टिव डेफनेस(बहरेपन का एक प्रकार) कहते हैं। कन्डक्टिव डेफनेस के कारण कान का मैल या फंगस होना, कान का बहना, जिसकी वजह से कान का पर्दा फट जाता है और उसमें छेद हो जाता है, ओटोस्क्रोसिस जिसमें कान की अत्यंत सूक्ष्म हड्डी स्टेपीज और भी सूक्ष्म हो जाती है, जिसके कारण कम्पन आन्तरिक कान तक नहीं पहुंचता है, हो सकते हैं। इस तरह का बहरापन सामान्यतया युवाओं में कान बहे बगैर भी हो सकता है। इसके अलावा कान पर जोर से झापड़ मारना, चोट लगना, या तेज ध्वनि के धमाके द्वारा कान का पर्दा फट सकता है। इस स्थिति में कान से खून आ सकता है। कान सुन्न हो जाता है अथवा उसमें सांय-सांय की आवाज आने लगती है। सिर भारी हो जाता है व चक्कर भी आ सकता है।
सेन्सरी न्यूरल बहरापन
यदि अवरोध कान के आंतरिक भाग में या सुनने से संबंधित नस में है, तो इसे सेन्सरी न्यूरल डेफनेस कहते हैं। इसके सामान्य लक्षण में कान से सांय-सांय की आवाज अथवा तरह-तरह की आवाजें आना और कान का भारी होना, कान में दर्द होना, जो मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से बढ़ सकता है, चक्कर आना, व्यक्तित्व से संबंधित मानसिक परेशानियां आदि होते हैं।सेन्सरी न्यूरल बहरापनके कारण पैदाइशी बहरापन, जो वंशानुगत अथवा पैदा होते समय बच्चे के देर से रोने पर खून में आक्सीजन की कमी के कारण अथवा कान के पूर्णतया विकसित न होने के कारण हो सकता है। इनके अलावा ध्वनि प्रदूषण जैसे तेज आवाज के जेनरेटर, प्रेशर हार्न, वाहनों द्वारा प्रदूषण से भी बहरापन हो सकता है। और अधिक उम्र की वजह से कान में शिथिलता आ जाना, कभी-कभी कान में बहरापन एकदम से आ जाता है। इस स्थिति में शीघ्र ही नाक,कान,गला विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए।
सावधानियाँ
इस मामले में बरती जाने वाली सावधानियां इस प्रकार से हैं:
- शोरगुल वाले स्थानों से दूर रहें
- डॉक्टर से सलाह लेकर बहरेपन के कारण का पता लगायें
- सुनने में सहायक यंत्रों का उपयोग करें
-सलीम ख़ान
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उम्दा जानकारी आभार
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दिक्कत यही है कि बहुत सी चीजों पर हमारा नियंत्रण नहीं है। दिल्ली में तो ध्वनि प्रदूषण बहुत कम है मगर बाकी राजधानियों में मैंने महसूस किया कि सड़कों पर अनावश्यक बजने वाला हॉर्न कितना नुकसानदेह हो सकता है। पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट को इस संबंध में निर्देश भी देने पड़े थे।
नवजात बच्चों में जन्मजात बहरेपन का पता लगाने के लिए स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायोडिजाइन (एसआईबी) कार्यक्रम के तहत एक स्टार्टअप कंपनी ने नया उपकरण 'सोहम' बनाया है।पढ़े और भी Hindi News
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